खैर, यह सवाल इंटरनेट पर कई लोगों ने पूछा है। क्या आपने इसका जवाब देने की कोशिश की है?
कल्पना करें कि आप एक फिल्म देख रहे है जिसमें सारे अलग-अलग किरदार दिखने में एक जैसे लग रहे है! आपके आसपास चलने वाले लोग बिल्कुल वैसे ही दिख रहे हैं जैसे आप हैं!
सबसे पहली बात शायद दिमाग में यह आएगी कि चेहरे की पहचान के आधार पर भेदभाव करने वाला कोई नहीं होगा| लोग सिर्फ चेहरे की अलग-अलग अभिव्यक्तियों के साथ अपनी तस्वीरों को अपडेट करेंगे| सौंदर्य प्रतियोगिताओं में विजेताओं की तलाश में अलग-अलग मापदंड होंगे। इसके अलावा गर्लफ्रेंड के साथ डेटिंग में आपका रूप भी कोई मायने नहीं रखेगा|
आप सही सोच रहे है कि हमारे बीच अंतर करने के कुछ और तरीके तो होंगे| हो सकता है कि हम गंध को सूँघ कर उसे पहचानने की क्षमता (घ्राण तीक्ष्णता) को बढ़ा ले|
इसके अलावा, सिर्फ इसलिए कि हम सभी एक जैसे दिखेंगे, इसका मतलब यह नहीं है कि हम सभी एक जैसा सोचेंगे भी। हमारे शरीर की बनावट, बालों की बनावट, आवाज, त्वचा का रंग हमारे जीन की विशेषताओं और रहने के स्थान के साथ अलग-अलग होगा, जैसे भूमध्य रेखा के पास रहने वाले लोग जहां सूर्य की रोशनी अधिकतम होती है, अधिक मेलेनिन स्राव के कारण गहरे रंग की त्वचा वाले होंगे| मेलेनिन हमें सूरज की हानिकारक किरणों से बचाता है।
आपने जुड़वां लोगों को तो देखा ही होगा वे दिखने में तो एक जैसे ही लगते है लेकिन जीन की अलग-अलग विशेषताओं के कारण उनका व्यवहार, गतिविधियाँ एक दूसरे से काफी अलग होती है|
समय के साथ होने वाला यह विकास हमें काफी अचंभित तो करता ही है इसके साथ ही हमें यह सोचने पर भी मजबूर करता है कि अगर यह विकास नहीं होता तो हम कैसे दिखते| लेकिन अभी हम लोगों को उनकी शरीर की बनावट के आधार पर पहचानने में सक्षम है|
आखिर में हमें यह बात अवश्य याद रखनी चाहिए कि, “सुंदरता देखने वाले की नजर में होती है|”
हिन्दी अनुवाद: कार्तिकेय शुक्ला
मुख्य लेखक: मौमिता माजूमदार